Saturday, May 21, 2011

तुम यहीं बैठे हो

आज बादल गरजे नहीं,
दिल कहीं लगा नहीं
आँखें मूँद लीं खुलते ही,
मेरे लिए यह सुबह नहीं
यह दिन जी तो पाते ना हम,
मगर तुम यहीं बैठे हो

मन घबराता हुआ सही,
दरिया में गोते लगाता कई
बेबुनियाद दर्द के दलदल में,
पगला, ठिकाना अपना ढूंढता कहीं
सतह तक वापस आना तो चाहते ना हम,
मगर तुम यहीं बैठे हो

मुस्कुराना हम चाहते नहीं,
आंसुओं को तुम जो चूम लेते हो
खुश रहने की भी हिम्मत नहीं,
तुम दर्द का जो ख़याल करते हो
मगर हंसी देखो रूकती नहीं
जब तक तुम यहीं बैठे हो